पर्दानशीं कहो या परदे मे रहने की बात करो...सवाल तो नज़र के झुकने का है...नज़रो का मयखाना
इतना नशीला है कि सकून भी हमारी ही बाहों मे पाओ गे..तितर-बितर रहते हो,किन खयालो मे जीते
हो...कदमों को चलाने की बात आए तो क्यों डगमगा जाते हो...कहते हो कुछ मगर करते हो कुछ..
कौन सी बस्ती से आए हो...फलसफा मुहब्बत का कहां पता होगा कि मुहब्बत को कहीं दरीचों मे
दफ़न कर आए हो....
इतना नशीला है कि सकून भी हमारी ही बाहों मे पाओ गे..तितर-बितर रहते हो,किन खयालो मे जीते
हो...कदमों को चलाने की बात आए तो क्यों डगमगा जाते हो...कहते हो कुछ मगर करते हो कुछ..
कौन सी बस्ती से आए हो...फलसफा मुहब्बत का कहां पता होगा कि मुहब्बत को कहीं दरीचों मे
दफ़न कर आए हो....