Saturday 18 April 2020

मौन समझे या फिर मौन की भाषा समझे...या फिर आज मौन की परिभाषा ही लिख दे...दिल के भावों

को जब बयां ना कर सके तो मौन ही काम आता है..मौन जब भी मौन होता है तो क्यों आँखों के रास्ते

बह जाता है...ज़ज्बात गहरे है या ज़ख़्मी है या यह दर्द-दुःख देख कर रूह भी घायल है...धरा के छोटे

से इंसान है..कौन कहाँ बेघर हो गया,कौन किस घर मे भूखा ही सो गया..कोई अपनों से मिलने को ही

तरस गया..प्रभु,अब तो दया करो..हम बहुत मामूली इंसान है,बेशक खुद को समझते खास है..दर पे

मिल के हम सारे शीश नवाते है..अपनी भूलों के लिए माफ़ी भी चाहते है...दया करो प्रभु...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...