लफ्ज़ सिर्फ दो ही थे मगर प्रभात की बेला मे दिल को छू गए...सुबह कभी-कभी इतनी खुशगवार भी
होती है,यह मानने पे मजबूर हो गए..तू मालिक है या खुदा मेरा..नाम चाहे हज़ारो हो तेरे, पर हम रूह
की नज़र तेरे सज़दे मे झुक गए...यह प्रभात की बेला आए बार-बार हर बार,हम को ख़ुशी के दो लम्हे
जो मिल गए...परवरदिगार तुझे मानते आए है सदा से,तेरे इस करिश्मे पे हम तेरे कायल हो गए..
होती है,यह मानने पे मजबूर हो गए..तू मालिक है या खुदा मेरा..नाम चाहे हज़ारो हो तेरे, पर हम रूह
की नज़र तेरे सज़दे मे झुक गए...यह प्रभात की बेला आए बार-बार हर बार,हम को ख़ुशी के दो लम्हे
जो मिल गए...परवरदिगार तुझे मानते आए है सदा से,तेरे इस करिश्मे पे हम तेरे कायल हो गए..