Tuesday, 21 April 2020

लफ्ज़ सिर्फ दो ही थे मगर प्रभात की बेला मे दिल को छू गए...सुबह कभी-कभी इतनी खुशगवार भी

होती है,यह मानने पे मजबूर हो गए..तू मालिक है या खुदा मेरा..नाम चाहे हज़ारो हो तेरे, पर हम रूह

की नज़र तेरे सज़दे मे झुक गए...यह प्रभात की बेला आए बार-बार हर बार,हम को ख़ुशी के दो लम्हे

जो मिल गए...परवरदिगार तुझे मानते आए है सदा से,तेरे इस करिश्मे पे हम तेरे कायल हो गए..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...