Saturday 18 April 2020

                                   ''एक छोटी सी याद अपने बाऊ जी के नाम''

आज यादों  के झरोखों से क्या मिला मुझ को..एक छोटी गुड्डी नटखट सी..जो हाथ ना आती थी किसी के ..कुछ खेल थे मेरे बचपन के,रंगीन सपने थे आप के साथ कुछ और साल रहने के...बीमार माँ और आप का डर--ऐसा डर कि गुड्डी का क्या होगा..मुझे खिलने से पहले क्यों अपने घर से विदा कर दिया आप ने..मैंने  तो आप से कुछ माँगा भी नहीं...कोई ख्वाइशे भी नहीं थी.. आप के आंगन मे जो भी मिला,वो फिर कभी नहीं मिला..सँस्कारो का,अनगिनत यादों का तोहफा आज भी हल पल,पल-पल साथ रहता है..अल्हड़पन से भरी आप की गुड्डी अचानक से बड़ी हो गई..धीरे-धीरे ज़िम्मेदारियों मे ग़ुम आप के पास आने को तरस गई..बहुत कुछ रहा ऐसा जो किसी को बता भी नहीं सकी......................आज आप की याद क्यों आ रही है इतनी जयदा कि शब्दों मे नमी घुल रही है जैसे..माँ मेरे रूप पे वारी-वारी जाती थी..उसे तो मेरे सिवा कोई और खूबसूरत ना लगती थी..जी चाहता है आज खूब लिखू,पर आंसू इज़ाज़त नहीं देते....सँस्कारो की पोटली साथ लिए.........आप की छोटी सी गुड्डी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...