Friday 24 April 2020

संस्कार भूले..आँखों की शर्म भूले..खुद से खुद के काम करने के लिए,सहारा ढूंढे..सम्मान के नाम पर

कुछ भी ना बोले...ना प्यार है ना लगाव है और ना रिश्तो मे कही ठहराव है..ना सहनशक्ति का कोई

नाम है...गुस्से और आक्रोश से भरा यहाँ हर इंसान है...सादा जीवन इक मज़ाक है..मंहगी-मंहगी

गाड़ियों के बिना जीवन ही बेकार है...हीरे-जेवरात ना होंगे तो समाज मे किसी का बड़ा नाम है...

दाल-रोटी के लिए प्रभु को शुक्राना देना,अब कितनो का काम है...परिंदो को मार देना एक आम सा

काम है..कितने विषैले तत्व फैले है जहान मे,फिर भी सोचे सतयुग कहां मेरे राम है..भगवान् के नियमो

पे चला जाता तो कलयुग क्यों आता...खुद को बदल ले गर अभी भी हर इंसान,महामारी का नहीं

होगा इस जहाँ मे कोई नाम....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...