चाहते गर तो सारा आसमां हम को मिल सकता था..एक बार मुस्कुरा देते तो जिस को चाहते,वो हम पे
जान लुटा सकता था...थोड़ा ईमान से गिर जाते तो हीरे-जेवरात के ख़ज़ाने हम को मिल सकते थे..
दौलत का अम्बार इतना होता कि सारा जन्म ऐशो-आराम से गुजार सकते थे...माँ हमेशा कहा करती
थी,इंसा वो नहीं होता जो बिक जाया करता है..जो ग़ुरबत को भी ख़ुशी-ख़ुशी उस की रज़ा मान ले,वो
हर इम्तिहान मे पास हो जाया करता है...हर पल अपनी माँ की इस बात को याद रखते है..दर्द मिले या
ग़ुरबत...रज़ा मान मालिक की इस ज़िंदगी को जी लिया करते है...
जान लुटा सकता था...थोड़ा ईमान से गिर जाते तो हीरे-जेवरात के ख़ज़ाने हम को मिल सकते थे..
दौलत का अम्बार इतना होता कि सारा जन्म ऐशो-आराम से गुजार सकते थे...माँ हमेशा कहा करती
थी,इंसा वो नहीं होता जो बिक जाया करता है..जो ग़ुरबत को भी ख़ुशी-ख़ुशी उस की रज़ा मान ले,वो
हर इम्तिहान मे पास हो जाया करता है...हर पल अपनी माँ की इस बात को याद रखते है..दर्द मिले या
ग़ुरबत...रज़ा मान मालिक की इस ज़िंदगी को जी लिया करते है...