नूर बरसता रहे मेरे चेहरे से,तुझे क्या लेना-देना है...तू बस मशगूल रह अपने काम मे,मेरी हसरतों से
तुझे क्या लेना-देना है...मौसम इस बहार का क्या पता कब आए मगर तुझ बेदर्दी को क्या करना है..
तू रखना संभाल के इस बेजान दौलत को,हमारी जीती-जागती जान को तुझे कब समझना है...जी तो
चाहता है यह कागज़ यह किताबे तेरी,फाड़ कर दरिया मे फैंक दे..उम्मीदों के चिराग जलाए और रात
को रौशन कर दे...नूर इस चेहरे का कहां रखे कि तेरी किसी फ़रियाद मे अब हम नहीं आते..
तुझे क्या लेना-देना है...मौसम इस बहार का क्या पता कब आए मगर तुझ बेदर्दी को क्या करना है..
तू रखना संभाल के इस बेजान दौलत को,हमारी जीती-जागती जान को तुझे कब समझना है...जी तो
चाहता है यह कागज़ यह किताबे तेरी,फाड़ कर दरिया मे फैंक दे..उम्मीदों के चिराग जलाए और रात
को रौशन कर दे...नूर इस चेहरे का कहां रखे कि तेरी किसी फ़रियाद मे अब हम नहीं आते..