अपने बाबा की लाड़ली और माँ की पलकों की लड़ी...कितना उड़ी कौन जाने..कोई कहता रहा.परी
हो तुम..कोई परियों की रानी साबित करता रहा...किसी को हम भाए इतना कि चांदनी नाम दे दिया..
इज़्ज़त के फूल बिछाए हमारी राहों मे और हम को आसमाँ का मासूम परिंदा बना दिया..सच तो यही रहा
हम ने जो किया,जितना भी किया..बाबा-माँ के कहने पे किया..किसी ने समझा इसे और कोई हमी को
अनपढ़ बता हमारे संस्कारो का मज़ाक बना गया..
हो तुम..कोई परियों की रानी साबित करता रहा...किसी को हम भाए इतना कि चांदनी नाम दे दिया..
इज़्ज़त के फूल बिछाए हमारी राहों मे और हम को आसमाँ का मासूम परिंदा बना दिया..सच तो यही रहा
हम ने जो किया,जितना भी किया..बाबा-माँ के कहने पे किया..किसी ने समझा इसे और कोई हमी को
अनपढ़ बता हमारे संस्कारो का मज़ाक बना गया..