खुले आसमां की खुली हवा मे जाना बंद है तो क्या गम है...यह सोच कर सकून होना,क्या कम है कि
यह हवा अब कितनी साफ़-खुशगवार है..इंसानो की फितरत ने,गन्दा किया इस हवा को और नाम
दिया कि अब सब कुछ बर्बाद हो रहा...धुँआ विषैला इतना ना उड़ाया होता,पाप को दुनियां मे इतना ना
फैलाया होता तो नज़ारा अब भी सूंदर होता..इंसानी फितरत ही तो है,खुद गलत करना मगर दोष दूजे
को देना...जब भगवान् को ही दोष दे दिया तो इस इंसान का...क्या कहना..........
यह हवा अब कितनी साफ़-खुशगवार है..इंसानो की फितरत ने,गन्दा किया इस हवा को और नाम
दिया कि अब सब कुछ बर्बाद हो रहा...धुँआ विषैला इतना ना उड़ाया होता,पाप को दुनियां मे इतना ना
फैलाया होता तो नज़ारा अब भी सूंदर होता..इंसानी फितरत ही तो है,खुद गलत करना मगर दोष दूजे
को देना...जब भगवान् को ही दोष दे दिया तो इस इंसान का...क्या कहना..........