Sunday 26 April 2020

खुले आसमां की खुली हवा मे जाना बंद है तो क्या गम है...यह सोच कर सकून होना,क्या कम है कि

यह हवा अब कितनी साफ़-खुशगवार है..इंसानो की फितरत ने,गन्दा किया इस हवा को और नाम

दिया कि अब सब कुछ बर्बाद हो रहा...धुँआ विषैला इतना ना उड़ाया होता,पाप को दुनियां मे इतना ना

फैलाया होता तो नज़ारा अब भी सूंदर होता..इंसानी फितरत ही तो है,खुद गलत करना मगर दोष दूजे

को देना...जब भगवान् को ही दोष दे दिया तो इस इंसान का...क्या कहना.......... 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...