यह ढलती शाम की हवा तेरे आने का सन्देश क्यों दे रही है..यह जान कर,अब रात अपने शबाब पे
आने को है,शाम की हवा का सन्देश क्यों दिल पे भारी है..उम्मीदों के चिराग नहीं बुझाए गे,दिए की
लो पूरी रात जलाए गे..चाँद पूरा खिला है आसमां मे आज..उसी को देख कर रात गुजार दे गे आज..
ज़िद किस बात की,हवा झूठ भी बता सकती है..संदेसा कभी-कभी गलत भी बता सकती है...
आने को है,शाम की हवा का सन्देश क्यों दिल पे भारी है..उम्मीदों के चिराग नहीं बुझाए गे,दिए की
लो पूरी रात जलाए गे..चाँद पूरा खिला है आसमां मे आज..उसी को देख कर रात गुजार दे गे आज..
ज़िद किस बात की,हवा झूठ भी बता सकती है..संदेसा कभी-कभी गलत भी बता सकती है...