यह कैसा इंतज़ार है जो ख़त्म ही नहीं होता...साल,महीने और बरस..फिर भी खत्म नहीं होता...एक सदी
कितनी लम्बी होती है मगर, यहाँ तो सदिया कितनी बीत गई और इंतज़ार फिर भी बाकी है...हर रोज़
एक दिया उम्मीद का जलता है और शाम ढलते-ढलते बुझ भी जाता है..फिर सिरे से एक इंतज़ार और
शुरू होता है...दिल कहता है,उम्मीद पे दुनियां कायम है और यह नन्हा सा मासूम दिल,फिर से खुद की
बात मान लेता है..जब कि इसी दिल का दूजा हिस्सा कहता है.....इंतज़ार बहुत बाकी है अभी...
कितनी लम्बी होती है मगर, यहाँ तो सदिया कितनी बीत गई और इंतज़ार फिर भी बाकी है...हर रोज़
एक दिया उम्मीद का जलता है और शाम ढलते-ढलते बुझ भी जाता है..फिर सिरे से एक इंतज़ार और
शुरू होता है...दिल कहता है,उम्मीद पे दुनियां कायम है और यह नन्हा सा मासूम दिल,फिर से खुद की
बात मान लेता है..जब कि इसी दिल का दूजा हिस्सा कहता है.....इंतज़ार बहुत बाकी है अभी...