जो हम ने देखा वो क्या था...मंदिर मे एक जलता हुआ दीया या नूर की चादर मे लिपटा कोई अपना
सा मसीहा..सच हमारे सामने था बेशक माने उस को कोई मसीहा या फिर रौशन दीया...तक़दीर दे
रही थी हम को आवाज़ और हम झुके थे मंदिर की उसी चौखट पे,जहा पाई हम ने वो मशाल जो दिखाने
वाली थी हमे हमारी कोई पहचान..करिश्मे होते है,सुना था हम ने..पर यू भी होगा हम को खबर ना थी..
चल रहे है आज उसी मशाल के पीछे-पीछे,जो शायद हमे ले जाए क्षितिज के उस पार के पीछे..
सा मसीहा..सच हमारे सामने था बेशक माने उस को कोई मसीहा या फिर रौशन दीया...तक़दीर दे
रही थी हम को आवाज़ और हम झुके थे मंदिर की उसी चौखट पे,जहा पाई हम ने वो मशाल जो दिखाने
वाली थी हमे हमारी कोई पहचान..करिश्मे होते है,सुना था हम ने..पर यू भी होगा हम को खबर ना थी..
चल रहे है आज उसी मशाल के पीछे-पीछे,जो शायद हमे ले जाए क्षितिज के उस पार के पीछे..