Monday 20 April 2020

जो हम ने देखा वो क्या था...मंदिर मे एक जलता हुआ दीया या नूर की चादर मे लिपटा कोई अपना

सा मसीहा..सच हमारे सामने था बेशक माने उस को कोई मसीहा या फिर रौशन दीया...तक़दीर दे

रही थी हम को आवाज़ और हम झुके थे मंदिर की उसी चौखट पे,जहा पाई हम ने वो मशाल जो दिखाने

वाली थी हमे हमारी कोई पहचान..करिश्मे होते है,सुना था हम ने..पर यू भी होगा हम को खबर ना थी..

चल रहे है आज उसी मशाल के पीछे-पीछे,जो शायद हमे ले जाए क्षितिज के उस पार के पीछे..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...