तेरी ही राधा बन क्यों आसमां मे उड़ती रही...पीर मन मे भरी रही पर मीरा बन सहती रही..कभी लगा
सीता की तरह तुझी से दूर हो कर हर धर्म निभा जाऊ..तेरे ही दिल मे बसी,तेरी ही तस्वीर बन तुझे पल
पल लुभाऊ.. भोले भंडारी की गौरी बन,तेरे विष की धारा को खुद मे समा लू...रूप हज़ारो धरु,फिर भी
तेरे अंतर्मन की छवि कहलाऊ...तन वारु मन वारु..और रूह के महीन धागे तेरी इबादत करने के लिए
तेरे ही चरणों मे बांध दू...तेरी ही नज़रो मे बसी रहू,भले मुख से कुछ भी ना कहू....
सीता की तरह तुझी से दूर हो कर हर धर्म निभा जाऊ..तेरे ही दिल मे बसी,तेरी ही तस्वीर बन तुझे पल
पल लुभाऊ.. भोले भंडारी की गौरी बन,तेरे विष की धारा को खुद मे समा लू...रूप हज़ारो धरु,फिर भी
तेरे अंतर्मन की छवि कहलाऊ...तन वारु मन वारु..और रूह के महीन धागे तेरी इबादत करने के लिए
तेरे ही चरणों मे बांध दू...तेरी ही नज़रो मे बसी रहू,भले मुख से कुछ भी ना कहू....