दौलत के ख़ज़ाने हो या ऐशो-आराम का मसला...हम तो बस महकते रहे,ज़िंदगी के अहसान तले..
छोटी छोटी खुशियों मे जीते रहे,शिकायते किसी को ना देते हुए...बरखा मे हसते हसते बिना वजह
भीगते ही रहे..कहता है कोई तो कहता रहे,दीवाने है हम..ज़िंदगी जब तल्क दे रही है भरोसा,जिए
गे हम..कल कौन जाने कौन सा गम बदल दे दुनियाँ अपनी..तब होंगे ...इस पार या उस पार,.
छोटी छोटी खुशियों मे जीते रहे,शिकायते किसी को ना देते हुए...बरखा मे हसते हसते बिना वजह
भीगते ही रहे..कहता है कोई तो कहता रहे,दीवाने है हम..ज़िंदगी जब तल्क दे रही है भरोसा,जिए
गे हम..कल कौन जाने कौन सा गम बदल दे दुनियाँ अपनी..तब होंगे ...इस पार या उस पार,.