Thursday, 20 June 2019

क़यामत की वो रात आई और सब बहा ले गई..सपने जो संजोए थे,टूट कर सब ढह गए..पलट कर

क्या देखते,वो जहां कब का छोड़  आए थे..आंखे भरी थे रंगीन सपनो से,क्या क्या सोच कर आए थे..

समझौता कितना करते,हक़ ही सारे तक़दीर ने मिटाए थे..लड़ते तो किस अधिकार से,साँसों का बोझ

तक तो उठा ना पाए थे..पांव रखा बाहर दहलीज़ से,रास्ते अब खुद बनाने अपनी मर्ज़ी से आए थे..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...