कुछ कहानियो मे किरदार नहीं होते..सिर्फ होते है ज़ख्म पर इरादे बुलंद होते है...रिश्ते कही भी नहीं,
मगर हसरतो के द्धार खुले होते है..ख़ामोशी होती है भारी,लफ्ज़ सीने मे दबे होते है..कुछ करने की
ठान ले,तो चट्टानों से भी टकरा जाते है..ज़माने की परवाह करनी क्यों,जब कफ़न सर पे बांध लेते
है..ज़ख्म को भरने के लिए,इरादे हर पल बुलंद होते है..
मगर हसरतो के द्धार खुले होते है..ख़ामोशी होती है भारी,लफ्ज़ सीने मे दबे होते है..कुछ करने की
ठान ले,तो चट्टानों से भी टकरा जाते है..ज़माने की परवाह करनी क्यों,जब कफ़न सर पे बांध लेते
है..ज़ख्म को भरने के लिए,इरादे हर पल बुलंद होते है..