Sunday 30 June 2019

गीली मिट्टी की तरह हो गए है हम...जितना भी मोड़ लो,वैसे ही मुड़ते रहे गे अब...शिकायते बहुत

सुन चुके,अब खुद को खुद से ही जुदा कर दिया..अरमानो की बस्ती से कब से निकल आए है..

चादर पे दाग ना लगे,चादर ही फेंक आए है..दुपट्टा संभाले इक नई राह पे निकल आए है..जो शायद

जाए गी छोर तक..कुछ वादे कर चुके अपने आप से,ताउम्र निभाते रहे गे अब...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...