गीली मिट्टी की तरह हो गए है हम...जितना भी मोड़ लो,वैसे ही मुड़ते रहे गे अब...शिकायते बहुत
सुन चुके,अब खुद को खुद से ही जुदा कर दिया..अरमानो की बस्ती से कब से निकल आए है..
चादर पे दाग ना लगे,चादर ही फेंक आए है..दुपट्टा संभाले इक नई राह पे निकल आए है..जो शायद
जाए गी छोर तक..कुछ वादे कर चुके अपने आप से,ताउम्र निभाते रहे गे अब...
सुन चुके,अब खुद को खुद से ही जुदा कर दिया..अरमानो की बस्ती से कब से निकल आए है..
चादर पे दाग ना लगे,चादर ही फेंक आए है..दुपट्टा संभाले इक नई राह पे निकल आए है..जो शायद
जाए गी छोर तक..कुछ वादे कर चुके अपने आप से,ताउम्र निभाते रहे गे अब...