यह खुशियां कही उधार की ना हो,डर लगता है..ज़िंदगी ने ज़हर पिलाया है इतना जयदा,कि अब यह
अमृत भी धुआँ धुआँ सा लगता है..गहरी नींद मे सोते है अब,गर आंख खुले तो घबरा जाते है..टप टप
गिरते है आंसू और बेहाल हो जाते है..तन्हाई कही फिर से ना डस ले,ज़हर ज़माना फिर ना पिला दे..
ज़हर वो अब ना पी पाए गे,खुशियों को सीने मे दबा कर अपनी माँ के पास लौट जाए गे..
अमृत भी धुआँ धुआँ सा लगता है..गहरी नींद मे सोते है अब,गर आंख खुले तो घबरा जाते है..टप टप
गिरते है आंसू और बेहाल हो जाते है..तन्हाई कही फिर से ना डस ले,ज़हर ज़माना फिर ना पिला दे..
ज़हर वो अब ना पी पाए गे,खुशियों को सीने मे दबा कर अपनी माँ के पास लौट जाए गे..