मुहब्बत की सीमा नहीं होती...यह तो वो इनायत है,जो सब के पास नहीं होती..जज्बा इस मुहब्बत
का इक पल मे ही खिल जाता है..सालो की बात नहीं,कुछ दिनों मे क़ुरबानी पे आ जाता है...हवस के
नाम को मुहब्बत नहीं कहते,जो दूजे पे यकीं ना करे उस को पाक मुहब्बत के मायने समझ ही नहीं
आते...बेबसी को आड़े रख कर,जो मुहब्बत से डरा करते है..अक्सर वो प्यार नहीं सिर्फ दगा दिया करते
है...
का इक पल मे ही खिल जाता है..सालो की बात नहीं,कुछ दिनों मे क़ुरबानी पे आ जाता है...हवस के
नाम को मुहब्बत नहीं कहते,जो दूजे पे यकीं ना करे उस को पाक मुहब्बत के मायने समझ ही नहीं
आते...बेबसी को आड़े रख कर,जो मुहब्बत से डरा करते है..अक्सर वो प्यार नहीं सिर्फ दगा दिया करते
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