भरभरा कर जो गिरी है दिल की दीवारें,बहुत दर्द है इन मे अभी भी...थामने के लिए जो हाथ उठाते है
तो एहसास होता है,यह दिल तो बुझा चिराग बरसो से था..हज़ारो बहाने थे खुशियाँ लुटाने के,क्या यह
कम था पाँव के नासूर पे चल कर किसी की जान बचाने के..माँ सच ही कहती थी,इस दुनियाँ के साथ
तू कैसे चल पाए गी..तेरी इक छोटी सी खता,तुझे हज़ारो आंसू रुलाए गी...
तो एहसास होता है,यह दिल तो बुझा चिराग बरसो से था..हज़ारो बहाने थे खुशियाँ लुटाने के,क्या यह
कम था पाँव के नासूर पे चल कर किसी की जान बचाने के..माँ सच ही कहती थी,इस दुनियाँ के साथ
तू कैसे चल पाए गी..तेरी इक छोटी सी खता,तुझे हज़ारो आंसू रुलाए गी...