मशक्क्त है या फिर कोई जलजला उधार का..जल जल के खाक ना हो जाए फिर कोई सिलसिला..
पायल अब बजने से इंकार करती है,फूलो की यह वेणी,गज़रे के साथ रो लेती है..घुँघरू की ताल पे
नाचे भला कब तल्क,बेड़ियों मे बंध कर रहे क्यों अब भला..नज़र ढूंढे किसे कि यहाँ सब शैतान है...
प्यार का दावा करे,ज़ख्मो को फिर नया इक ज़ख़्म दे..खाक होते रहे या जलजला बन घुटते रहे...
पायल अब बजने से इंकार करती है,फूलो की यह वेणी,गज़रे के साथ रो लेती है..घुँघरू की ताल पे
नाचे भला कब तल्क,बेड़ियों मे बंध कर रहे क्यों अब भला..नज़र ढूंढे किसे कि यहाँ सब शैतान है...
प्यार का दावा करे,ज़ख्मो को फिर नया इक ज़ख़्म दे..खाक होते रहे या जलजला बन घुटते रहे...