Saturday 15 June 2019

मशक्क्त है या फिर कोई जलजला उधार का..जल जल के खाक ना हो जाए फिर कोई सिलसिला..

पायल अब बजने से इंकार करती है,फूलो की यह वेणी,गज़रे के साथ रो लेती है..घुँघरू की ताल पे

नाचे भला कब तल्क,बेड़ियों मे बंध कर रहे क्यों अब भला..नज़र ढूंढे किसे कि यहाँ सब शैतान है...

प्यार का दावा करे,ज़ख्मो को फिर नया इक ज़ख़्म दे..खाक होते रहे या जलजला बन घुटते रहे...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...