रेखाएं ही रेखाएं है..कोई सरल नहीं,कुछ टेढ़ी कुछ मेढ़ी,कुछ जिंदगी को उलझा देने वाली..ढूंढ रहे है
इस मे कहां बसी है जीवन-रेखा..फिर बहुत कुछ सोच कर शिद्दत से अपने खुदा को याद किया,झुक
गए उस के सज़दे मे...पलके भीगी तो इतनी भीगी कि आंखे खोली जो इन को सूखाने के लिए,अपनी
लक्ष्मण-रेखा को गिरा पाया..सामने था अपने खुदा का दरबार,मुद्ददत बाद उस को सामने पाया..ओह,
मेरे खुदा इस दिल को अब करार आया,अब हर रेखा को सरल ही सरल पाया..
इस मे कहां बसी है जीवन-रेखा..फिर बहुत कुछ सोच कर शिद्दत से अपने खुदा को याद किया,झुक
गए उस के सज़दे मे...पलके भीगी तो इतनी भीगी कि आंखे खोली जो इन को सूखाने के लिए,अपनी
लक्ष्मण-रेखा को गिरा पाया..सामने था अपने खुदा का दरबार,मुद्ददत बाद उस को सामने पाया..ओह,
मेरे खुदा इस दिल को अब करार आया,अब हर रेखा को सरल ही सरल पाया..