चंचल से यह तेरे नैना,जब जब शरारत करते है..लबो से तेरे वो दिल-आफ्ज़ा लफ्ज़ जो निकलते है..
हमारी पायल की रुनझुन को सुन कर क्यों तेरे होश उड़ने लगते है..ना आज़मा हम को इतना ,हम
तो पत्थर को भी आग लगा देते है..मुहब्बत की क़शिश सूख जाए,वो मुहब्बत कहां होती है..जो टूटी
दरारों को भर दे,वो मुहब्बत से भी जयदा.....बस रूहे-आवाज़ होती है...
हमारी पायल की रुनझुन को सुन कर क्यों तेरे होश उड़ने लगते है..ना आज़मा हम को इतना ,हम
तो पत्थर को भी आग लगा देते है..मुहब्बत की क़शिश सूख जाए,वो मुहब्बत कहां होती है..जो टूटी
दरारों को भर दे,वो मुहब्बत से भी जयदा.....बस रूहे-आवाज़ होती है...