Friday 28 June 2019

वो कही कोई रिश्ता भी ना था..दूर दूर तक कही मिलना भी ना था..शक्लों-सूरत की कोई पहचान

ना थी..घरौंदा कभी कोई अपना भी होगा,यह भी नसीब के खाते मे ना था..फिर भी वो रिश्ते मे मेरा

कृष्ण बना और मैंने राधा का रूप धरा...लोग कहते है यह कलयुग है,यहाँ मुहब्बत पाक नहीं होती..

धरती के किसी कण मे मुहब्बत आज भी ज़िंदा है,सोचने की बात है यहाँ किसी रूप मे राधा है तो कही

कृष्ण भी उसी के साथ ज़िंदा है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...