वो कही कोई रिश्ता भी ना था..दूर दूर तक कही मिलना भी ना था..शक्लों-सूरत की कोई पहचान
ना थी..घरौंदा कभी कोई अपना भी होगा,यह भी नसीब के खाते मे ना था..फिर भी वो रिश्ते मे मेरा
कृष्ण बना और मैंने राधा का रूप धरा...लोग कहते है यह कलयुग है,यहाँ मुहब्बत पाक नहीं होती..
धरती के किसी कण मे मुहब्बत आज भी ज़िंदा है,सोचने की बात है यहाँ किसी रूप मे राधा है तो कही
कृष्ण भी उसी के साथ ज़िंदा है..
ना थी..घरौंदा कभी कोई अपना भी होगा,यह भी नसीब के खाते मे ना था..फिर भी वो रिश्ते मे मेरा
कृष्ण बना और मैंने राधा का रूप धरा...लोग कहते है यह कलयुग है,यहाँ मुहब्बत पाक नहीं होती..
धरती के किसी कण मे मुहब्बत आज भी ज़िंदा है,सोचने की बात है यहाँ किसी रूप मे राधा है तो कही
कृष्ण भी उसी के साथ ज़िंदा है..