अफरा-तफरी की इस दौड़ मे,जहा हर शख्स मशरूफ है अपने कामो मे...इस दौड़ से परे आज जो पाया
हम ने,कुदरत की मेहरबानी का एक अजूबा था..भोला सा मासूम सा चेहरा,वो प्यारी प्यारी दो जोड़ी
आंखे..उस ने ''माँ'' कह कर जो पुकारा मुझ को,मेरे दुपट्टे को नन्ही ऊँगली मे जो पकड़ा उस ने..निहाल
हो गए कुदरत के करिश्मे पे..ममता-दुलार क्या इतना लुटाया था उस परी पे हम ने,यह सवाल कौंधा
ज़ेहन मे अपने..आज भूल गए है सब,कि किस ने हम को सताया,या किस ने कितना रुलाया..इन दो
जोड़ी आँखों मे सब कुछ, पाया .सब कुछ पाया ...
हम ने,कुदरत की मेहरबानी का एक अजूबा था..भोला सा मासूम सा चेहरा,वो प्यारी प्यारी दो जोड़ी
आंखे..उस ने ''माँ'' कह कर जो पुकारा मुझ को,मेरे दुपट्टे को नन्ही ऊँगली मे जो पकड़ा उस ने..निहाल
हो गए कुदरत के करिश्मे पे..ममता-दुलार क्या इतना लुटाया था उस परी पे हम ने,यह सवाल कौंधा
ज़ेहन मे अपने..आज भूल गए है सब,कि किस ने हम को सताया,या किस ने कितना रुलाया..इन दो
जोड़ी आँखों मे सब कुछ, पाया .सब कुछ पाया ...