बादलों की ओट से तो कभी चांदनी के छोर से...हज़ारो पर्दो मे घिरे हो मगर सोचना सिर्फ हमारे लिए...
इक लफ्ज़ मुहब्बत का लिख देना और चोरी छिपे हमारे चेहरे के रंगो को पढ़ना...रातो को जाग जाग
कर कुछ कुछ लिखना और हमीं को मुहब्बत की देवी कहना..हमारी ही सलामती के लिए दुआ पे दुआ
करना..पांव टिका दिए हर मंदिर हर मस्जिद मे हम ने..बादलों से कहा तो कभी चांदनी से पूछा,इतने
पर्दो मे ना रख मेहबूब को मेरे कि उस को ढूंढ़ने के लिए जन्म हज़ारो लेने पड़े..
इक लफ्ज़ मुहब्बत का लिख देना और चोरी छिपे हमारे चेहरे के रंगो को पढ़ना...रातो को जाग जाग
कर कुछ कुछ लिखना और हमीं को मुहब्बत की देवी कहना..हमारी ही सलामती के लिए दुआ पे दुआ
करना..पांव टिका दिए हर मंदिर हर मस्जिद मे हम ने..बादलों से कहा तो कभी चांदनी से पूछा,इतने
पर्दो मे ना रख मेहबूब को मेरे कि उस को ढूंढ़ने के लिए जन्म हज़ारो लेने पड़े..