Sunday 2 June 2019

फिर आज भभका मन का यह आशियाना..फिर कही से बरसा इन आँखों का सावन..झड़ी लगी है

इन आंसुओ की आज..किसी के रोके ना रुके गी यह बरसात...गुजरा गहरा तूफान फिर से क्यों आज

दिख गया..टुकर टुकर आसमां को हसरतो से देखना क्यों याद आ गया..बिलख बिलख कर ना रोये

इस डर से मन के आशियाने को फिर से समझा दिया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...