फिर आज भभका मन का यह आशियाना..फिर कही से बरसा इन आँखों का सावन..झड़ी लगी है
इन आंसुओ की आज..किसी के रोके ना रुके गी यह बरसात...गुजरा गहरा तूफान फिर से क्यों आज
दिख गया..टुकर टुकर आसमां को हसरतो से देखना क्यों याद आ गया..बिलख बिलख कर ना रोये
इस डर से मन के आशियाने को फिर से समझा दिया...
इन आंसुओ की आज..किसी के रोके ना रुके गी यह बरसात...गुजरा गहरा तूफान फिर से क्यों आज
दिख गया..टुकर टुकर आसमां को हसरतो से देखना क्यों याद आ गया..बिलख बिलख कर ना रोये
इस डर से मन के आशियाने को फिर से समझा दिया...