बार बार एक ही खता क्यों हो जाती है..दिलो-दिमाग की जंग मे हार दिल की क्यों हो जाती है..देता
रहता है इशारा ना जाने कितनी बार दिमाग...दिल जो हसरतो के जाल मे फिर खता कर लेता है...
काम करता है सिर्फ इतना कि आँखों को रुला देता है..और जुबान से खता ना करने की माफ़ी भी
मंगवा देता है..समझाए तो इस दिल को कैसे समझाए ,कम्बख़त..अब मेरे पास रहता ही कहाँ है...
रहता है इशारा ना जाने कितनी बार दिमाग...दिल जो हसरतो के जाल मे फिर खता कर लेता है...
काम करता है सिर्फ इतना कि आँखों को रुला देता है..और जुबान से खता ना करने की माफ़ी भी
मंगवा देता है..समझाए तो इस दिल को कैसे समझाए ,कम्बख़त..अब मेरे पास रहता ही कहाँ है...