दुआ लेने के लिए किसी ने मंदिर ढूंढा..कभी मस्जिद की और तो कभी वाहेगुरु को ढूंढा..झुक झुक के
सलाम करते रहे हर दरबार मे...आंसू भी निकल आए अपने दुखो के बोझ से..कभी दौलत के लिए,कभी
रुतबे के लिए तो कभी किसी से होड़ मे आगे निकलने के लिए..काश,मंदिर के आगे भी उस भगवान् के
रूप को देखा होता..जो कर रहे थे नमन आप को,रोटी के टुकड़े के लिए ..बड़ी गाड़ी से बड़ी भूख थी जिन
की ..और आप तो बस मस्त थे,अपने भगवान् को याद करने मे..
सलाम करते रहे हर दरबार मे...आंसू भी निकल आए अपने दुखो के बोझ से..कभी दौलत के लिए,कभी
रुतबे के लिए तो कभी किसी से होड़ मे आगे निकलने के लिए..काश,मंदिर के आगे भी उस भगवान् के
रूप को देखा होता..जो कर रहे थे नमन आप को,रोटी के टुकड़े के लिए ..बड़ी गाड़ी से बड़ी भूख थी जिन
की ..और आप तो बस मस्त थे,अपने भगवान् को याद करने मे..