Saturday 8 June 2019

खता नहीं हमारी फिर भी,सज़दे मे तेरे फिर भी झुकते है..इल्ज़ाम कितने भी दे दे,कुछ भी कहने से

बचते है..अपना मान कर बहुत हक़ से मांग लिया  कुछ हम ने...एक बच्चा सा मन खिल गया था जैसे..

ज़िद कभी की नहीं,बस याद है इतना माँ-बाबा के सामने ज़िद्दी होते थे ऐसे ..सोचा,बार बार सोचा ...

बड़े हो गए है अब,ज़िद की तो क्यों कर की हम ने..इतना अपनापन पाया कि औकात सच मे भूल

गए अपनी..माफ़ कीजिये हम को,अपनी औकात से आगे नहीं बढ़े गे कभी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...