खता नहीं हमारी फिर भी,सज़दे मे तेरे फिर भी झुकते है..इल्ज़ाम कितने भी दे दे,कुछ भी कहने से
बचते है..अपना मान कर बहुत हक़ से मांग लिया कुछ हम ने...एक बच्चा सा मन खिल गया था जैसे..
ज़िद कभी की नहीं,बस याद है इतना माँ-बाबा के सामने ज़िद्दी होते थे ऐसे ..सोचा,बार बार सोचा ...
बड़े हो गए है अब,ज़िद की तो क्यों कर की हम ने..इतना अपनापन पाया कि औकात सच मे भूल
गए अपनी..माफ़ कीजिये हम को,अपनी औकात से आगे नहीं बढ़े गे कभी...
बचते है..अपना मान कर बहुत हक़ से मांग लिया कुछ हम ने...एक बच्चा सा मन खिल गया था जैसे..
ज़िद कभी की नहीं,बस याद है इतना माँ-बाबा के सामने ज़िद्दी होते थे ऐसे ..सोचा,बार बार सोचा ...
बड़े हो गए है अब,ज़िद की तो क्यों कर की हम ने..इतना अपनापन पाया कि औकात सच मे भूल
गए अपनी..माफ़ कीजिये हम को,अपनी औकात से आगे नहीं बढ़े गे कभी...