सांसे अब तो तेरे नाम की है..जितनी भी है क़यामत की रात तक है..ज़मीं से आसमां तक,इन की
रवानगी की सीमा पता नहीं कहां तक है..हो जहां तक भी,विश्वास की जुबां मे है...ज़िंदगी बाक़ी है
कितनी,इस का हिसाब नहीं रखे गे अब..कि हर सांस जब भी उठती गिरती है,तेरी खुश्बू के रेले से
मिलती जुलती है...अब तो रूह अपनी से भी, तेरी ही रूह की वो महक आती है..जो सांस शुरू हुई
थी तेरे नाम से,वो आज भी मेरे दिल को महकाती है...
रवानगी की सीमा पता नहीं कहां तक है..हो जहां तक भी,विश्वास की जुबां मे है...ज़िंदगी बाक़ी है
कितनी,इस का हिसाब नहीं रखे गे अब..कि हर सांस जब भी उठती गिरती है,तेरी खुश्बू के रेले से
मिलती जुलती है...अब तो रूह अपनी से भी, तेरी ही रूह की वो महक आती है..जो सांस शुरू हुई
थी तेरे नाम से,वो आज भी मेरे दिल को महकाती है...