Thursday 6 June 2019

ज़िंदगी जीने का यह तेरा अंदाज़,जैसे हो बेरुखी का कोई भटका पैगाम..धक् धक् दिल तो कभी करता

ही नहीं,लगता है जैसे रेगिस्तान की कोई मधुशाला हो....रेत ही रेत बिखरी है तेरे इस रेगिस्तान मे,

लगता है किसी सावन ने तुझे संवारा ही नहीं..अगर संवारा होता तो रेगिस्तान मे रेत के टीले ना होते,

धड़कनो के तार बजाने के लिए,गरज़ के बारिश के छींटे ना पड़ते...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...