दरिया का आना और मौज को बहा कर ले जाना..अपने अस्तित्व को साथ लिए,दरिया को अपना लेना..
कौन कहता कि मौज प्यासी है अपने दरिया मे..प्यास का होना या ना होना,मगर दरिया को खुद से
बांधे रखना..दरिया की सच्चाई को जान कर भी,अनदेखा कर देना..कभी खफा होना,कभी खुद मे
गुमसुम हो जाना..दरिया सोचता रह जाए गा कि मौज ने क्या कुर्बान किया उस पर..जब तल्क़ समझे
गा,मौज तो बेखौफ दूर बहुत दूर निकल जाए गी...
कौन कहता कि मौज प्यासी है अपने दरिया मे..प्यास का होना या ना होना,मगर दरिया को खुद से
बांधे रखना..दरिया की सच्चाई को जान कर भी,अनदेखा कर देना..कभी खफा होना,कभी खुद मे
गुमसुम हो जाना..दरिया सोचता रह जाए गा कि मौज ने क्या कुर्बान किया उस पर..जब तल्क़ समझे
गा,मौज तो बेखौफ दूर बहुत दूर निकल जाए गी...