ग़ुरबत मे रहो या ऐशो-आराम मे..आसमां की खुली छांव मिले सोने के लिए या बिछौना चादर का..
बात तो तेरे साथ की है..कहने को तो सब कह देते है निभा दे गे दूर तक,पर जब आती है निभाने पे
तो प्यार हवा हो जाता है..वादे सारे धरे के धरे रह जाते है..शुद्ध प्रेम की परिभाषा जब भी लिखते है,
तब तब इन सब से बरी हो कर ही लिखते है..दूर तक प्यार निभाने के लिए,साथी को ग़ुरबत मे भी
समझने के लिए..खुद से बहुत ऊपर उठना होगा..तभी तो साथी को हर बार,हर जन्म पाना होगा..
बात तो तेरे साथ की है..कहने को तो सब कह देते है निभा दे गे दूर तक,पर जब आती है निभाने पे
तो प्यार हवा हो जाता है..वादे सारे धरे के धरे रह जाते है..शुद्ध प्रेम की परिभाषा जब भी लिखते है,
तब तब इन सब से बरी हो कर ही लिखते है..दूर तक प्यार निभाने के लिए,साथी को ग़ुरबत मे भी
समझने के लिए..खुद से बहुत ऊपर उठना होगा..तभी तो साथी को हर बार,हर जन्म पाना होगा..