Wednesday 18 December 2019

ढाई अक्षर प्रेम के..जो ढूंढ़ने निकले इस जहान मे,कही ना कही कमी मिली हर किसी के प्रेम मे...

प्रेम जो था,किताबो की दुनियां मे..प्रेम जो था,दौलत के तहखानों मे..कही यह था,सिर्फ रूप-रंग के

हसीन तानो-बानो मे..कुछ सिर्फ प्रेम को हवस मान,दस्तूर इस का निभाते रहे..कही कोई दे गया आंसू

और ज़िंदगी प्रेम के लिए ख़ाक होती रही..क्या है प्रेम..ग्रन्थ पे ग्रन्थ लिखते रहे..पर कोई मिली ना राधा

ना कृष्ण कोई ऐसा मिला..जो प्रेम को सहेज ले सदियों तल्क़..अनंत से अनंत काल तक निभा दे ढाई

अक्षर प्रेम के...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...