शाम ढलते ही तेरा रात को अलविदा कहना,यू लगता है मुझे अब सब कुछ ख़ाली-ख़ाली है...आसमां
मे बेशुमार सितारे है,रात भर वो हम से बात करते है...बात चलती है जब तेरी मौजूदगी की,हम तो कुछ
भी बोल नहीं पाते है..क्या कहे उन सब से,हमारा चाँद तो शाम ढलते ही ढल जाता है..बिन बादलों के
भी अपने मे ही ग़ुम हो जाता है..शायद शाम को ही रात का एहसास कराना,उस की खास आदत है...
पर खास आदत तो हमारी भी है,रात जब शबाब पे आये तो ही उस को रात कहते है..तेरी तरह शाम को
बेवजह ही रात नहीं कहते...
मे बेशुमार सितारे है,रात भर वो हम से बात करते है...बात चलती है जब तेरी मौजूदगी की,हम तो कुछ
भी बोल नहीं पाते है..क्या कहे उन सब से,हमारा चाँद तो शाम ढलते ही ढल जाता है..बिन बादलों के
भी अपने मे ही ग़ुम हो जाता है..शायद शाम को ही रात का एहसास कराना,उस की खास आदत है...
पर खास आदत तो हमारी भी है,रात जब शबाब पे आये तो ही उस को रात कहते है..तेरी तरह शाम को
बेवजह ही रात नहीं कहते...