मोड़ ज़िंदगी मे बहुत आते है,आते रहे गे..कभी यह ज़िंदगी ले जाए गी आसमां के उस पार तो कभी
तक़दीर के तहत धरा पे पलट-गिरा जाए गी...ना इतराना आसमां मे अपने पंखो की उड़ान पर,ना
दर्द से बेहाल होना अपने गिर जाने के खौफ पर..तक़्दीरों के खेल बहुत न्यारे होते है,मुट्ठी खुली है
आज तो कल बंद भी हो सकती है..यारा,सुन जरा..जो मिट्ठी से सने तेरे कदमो को भी चूम ले,जो
तेरी भीगे पलकों को भी अपने आंचल से सोख ले..बस वही सच है,जो हर मोड़ पर खरा और खड़ा
रह पाए गा साथ तेरे...
तक़दीर के तहत धरा पे पलट-गिरा जाए गी...ना इतराना आसमां मे अपने पंखो की उड़ान पर,ना
दर्द से बेहाल होना अपने गिर जाने के खौफ पर..तक़्दीरों के खेल बहुत न्यारे होते है,मुट्ठी खुली है
आज तो कल बंद भी हो सकती है..यारा,सुन जरा..जो मिट्ठी से सने तेरे कदमो को भी चूम ले,जो
तेरी भीगे पलकों को भी अपने आंचल से सोख ले..बस वही सच है,जो हर मोड़ पर खरा और खड़ा
रह पाए गा साथ तेरे...