Sunday 29 December 2019

बहुत लफ्ज़ो को उतारा हम ने इन पन्नो पे..भूले से भी याद क्यों ना आया कभी कि यह कलम तो हर

कदम साथ थी मेरे..लफ्ज़ लिखे जब जब मुहब्बत के तो साथ हमारे थिरकी यह..दर्द से भरा मन जब

भी मेरा तो भी साथ चलने से मना नहीं किया इस ने..कोई बेहतरीन ख़ुशी जो पाई मैंने,एक सच्चे दोस्त

की तरह आसमां मे छलांग नहीं लगाई इस ने..सरल सहज रहने का जो पाठ हम सिखाते रहे अपनी

कलम को,उस पे भी खरी उतर गई कलम मेरी..दुनियां का हर रिश्ता यह कलम है हमारी..तुझे आदाब

बजाए या यू कह दे तू ही हमसफ़र  हमराज़ है मेरी..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...