बहुत लफ्ज़ो को उतारा हम ने इन पन्नो पे..भूले से भी याद क्यों ना आया कभी कि यह कलम तो हर
कदम साथ थी मेरे..लफ्ज़ लिखे जब जब मुहब्बत के तो साथ हमारे थिरकी यह..दर्द से भरा मन जब
भी मेरा तो भी साथ चलने से मना नहीं किया इस ने..कोई बेहतरीन ख़ुशी जो पाई मैंने,एक सच्चे दोस्त
की तरह आसमां मे छलांग नहीं लगाई इस ने..सरल सहज रहने का जो पाठ हम सिखाते रहे अपनी
कलम को,उस पे भी खरी उतर गई कलम मेरी..दुनियां का हर रिश्ता यह कलम है हमारी..तुझे आदाब
बजाए या यू कह दे तू ही हमसफ़र हमराज़ है मेरी..
कदम साथ थी मेरे..लफ्ज़ लिखे जब जब मुहब्बत के तो साथ हमारे थिरकी यह..दर्द से भरा मन जब
भी मेरा तो भी साथ चलने से मना नहीं किया इस ने..कोई बेहतरीन ख़ुशी जो पाई मैंने,एक सच्चे दोस्त
की तरह आसमां मे छलांग नहीं लगाई इस ने..सरल सहज रहने का जो पाठ हम सिखाते रहे अपनी
कलम को,उस पे भी खरी उतर गई कलम मेरी..दुनियां का हर रिश्ता यह कलम है हमारी..तुझे आदाब
बजाए या यू कह दे तू ही हमसफ़र हमराज़ है मेरी..