यू बार-बार राहें रोके गे हमारी तो साथ हमारे कैसे चल पाए गे...जरुरत मुझे तेरी और तुझे मेरी है,यह
बात बार-बार तुम को कैसे समझाए गे...चाँद की तरह बार-बार आप का यू छुप जाना,अँधेरा हुआ भी
नहीं और बिन बताए हमी से दूर चले जाना..तेरी रुखसती कितनी महंगी पड़ती है हमे,बताए तुझे कैसे
कि हम को बार-बार भूल जाना आदत है तेरी..और एक हम है आईना भी देखते है जब-जब,अपनी
सूरत मे तेरी ही सूरत दिखाई देती है हमे ...
बात बार-बार तुम को कैसे समझाए गे...चाँद की तरह बार-बार आप का यू छुप जाना,अँधेरा हुआ भी
नहीं और बिन बताए हमी से दूर चले जाना..तेरी रुखसती कितनी महंगी पड़ती है हमे,बताए तुझे कैसे
कि हम को बार-बार भूल जाना आदत है तेरी..और एक हम है आईना भी देखते है जब-जब,अपनी
सूरत मे तेरी ही सूरत दिखाई देती है हमे ...