Wednesday 11 December 2019

''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' शुद्ध प्रेम को परिशुद्ध प्रेम मे ढालती,सुर-ताल को मुहब्बत का नया आयाम देती,चूड़ियों की खनक को साजन के प्यार मे ग़ुम करती,प्यार जो ना सूरत से होता है,ना रंग-रूप से ,ना दौलत की खनक से..जो प्रेम दौलत के लालच  से बंधा हो,वो प्रेम हो ही नहीं सकता..प्रेमी के सुख-दुःख मे-उस की तकलीफ मे अपनी दुआ का रंग भरती,ग़ुरबत मे भी उस के संग-साथ रहने का वादा करती,उस से जुड़े हर इंसान को प्यार से अपना लेती.प्रेम मे झूठ की कोई जगह नहीं होती,झूठ प्रेम को खतम कर देता है......यह है मेरी खूबसूरत सरगोशियां,जो प्रेम के हर रंग हर रूप को आप के सामने लाती है..भावनाओं की इबादत करती मेरी यह सरगोशियां...इस के हर लफ्ज़ को प्यार और सम्मान देने के लिए,आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया..आभार..अभिनन्दन..  आप की अपनी शायरा 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...