''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' शुद्ध प्रेम को परिशुद्ध प्रेम मे ढालती,सुर-ताल को मुहब्बत का नया आयाम देती,चूड़ियों की खनक को साजन के प्यार मे ग़ुम करती,प्यार जो ना सूरत से होता है,ना रंग-रूप से ,ना दौलत की खनक से..जो प्रेम दौलत के लालच से बंधा हो,वो प्रेम हो ही नहीं सकता..प्रेमी के सुख-दुःख मे-उस की तकलीफ मे अपनी दुआ का रंग भरती,ग़ुरबत मे भी उस के संग-साथ रहने का वादा करती,उस से जुड़े हर इंसान को प्यार से अपना लेती.प्रेम मे झूठ की कोई जगह नहीं होती,झूठ प्रेम को खतम कर देता है......यह है मेरी खूबसूरत सरगोशियां,जो प्रेम के हर रंग हर रूप को आप के सामने लाती है..भावनाओं की इबादत करती मेरी यह सरगोशियां...इस के हर लफ्ज़ को प्यार और सम्मान देने के लिए,आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया..आभार..अभिनन्दन.. आप की अपनी शायरा
Wednesday, 11 December 2019
दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....
दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...
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बैठे है खुले आसमाँ के नीचे,मगर क्यों है बेहद ख़ामोशी यहाँ...कलम कह रही है क्यों ना लिखे ख़ामोशी की दास्तां यहाँ...आज है ख़ामोशी खामोश यहाँ औ...
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एक अनोखी सी अदा और हम तो जैसे शहज़ादी ही बन गए..कुछ नहीं मिला फिर भी जैसे राजकुमारी किसी देश के बन गए..सपने देखे बेइंतिहा,मगर पूरे नहीं हुए....
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मौसम क्यों बरस रहा है आज...क्या तेरे गेसुओं ने इन्हे खुलने की खबर भेजी है----बादल रह रह कर दे रहे है आवाज़े, बांध ले इस ज़ुल्फो को अब कि कह...