सरगोशियां इक प्रेम ग्रन्थ...प्रेम,प्यार,विरह,अलगाव,नाराज़गी,तपिश और भी बहुत से रंगो से सजी है मेरी खूबसूरत सी सरगोशियां..मेरी कलम अक्सर प्यार,मुहब्बत के साथ-साथ परिशुद्ध प्रेम की परिभाषा भी लिखती है..इस संसार मे सच्चा प्यार लुप्त हो चूका है..तभी संसार मे हर दूसरा प्राणी दुखी है,क्षुब्ध है..वजह प्रेम को समझा नहीं जाता..प्यार सिर्फ देह तक,चेहरे के रूप-रंग तक ही सीमित रह गया है..आज तू साथ है तो कल कोई और साथ होगा..प्रेम की शुद्धता किस ने समझी..लोग सिर्फ चेहरे और जिस्म के सौंदर्य को देख रहे है..और उसी चेहरे के सौंदर्य का व्याख्यान भी अपनी नन्ही सोच के तहत कर रहे है..चेहरा जो सदा एक सा सौंदर्य कायम नहीं रखता..जिस्म जो सौंदर्य के माप-दंड बदलता रहता है..दुःख की बात,पुरुष स्त्री मे उस के रूप-रंग को ही देख पाता है..पुरुष की सोच ऊँची उठ नहीं पाती..क्यों ? स्त्री,जो पुरुष को तब भी प्यार करती है,जब वो उस से कम सूंदर है..वो उस को उस की कमियों का एहसास तक नहीं कराती..और यही पुरुष गलती कर देता है..वो खुद को भगवान् ही मान लेता है..और उसी स्त्री को सम्मान देना बंद कर देता है,जो उस को आत्म-विश्वास से भरती है..सरगोशियां,किसी भी खास स्त्री-पुरुष को सांकेतिक नहीं करती..अपनी कलम को अपने हिसाब से,हर पहलू पे लिखती है..किसी को बुरा लगे तो माफ़ी चाहती हू..मगर सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ है,जो बार-बार हर बार प्यार,प्रेम और मुहब्बत के हर रंग को उजागर करे गी..सरगोशियां इक प्रेम ग्रन्थ..प्रेम मे आत्म-सम्मान को सर्वोतम स्थान देती है..प्रेम,प्यार और मुहब्बत..तभी कायम है ,जब स्त्री-पुरुष दोनों अपने आत्म-सम्मान के लिए प्रेम को स्थान देते है..जहा आत्म-सम्मान है,वही प्रेम है..
Sunday, 22 December 2019
दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....
दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...
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सादगी पे हमारी कोई फिदा हो गया--आॅखो की गहराई पे हमारी,वो कहाानिया ही लिख गया--वजूद को हमारे जाने बिना,हमारे वजूद से वो जुडता ही गया--जिन...
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ना जुबाँ ही खुली,ना इशारा आँखों ने दिया..बात बनने के लिए साथ तेरी वफ़ा ने दिया....य़ू तो बिखरे है ज़ज्बात हज़ारो सीने मे मेरे,लिखते है लफ़्ज़ो...
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लाज शर्म के बंधनो से दूर,तेरी ही दुनिया मे कदम रखने चले आए है..पाँव की जंजीरो को तोड़,लोग क्या कहे गे-इस सोच से भी बहुत दूर,तुझ से मिलने च...