Wednesday 25 December 2019

शामियाना इन आँखों का,इन पलकों का..रेत जो उड़ी किसी और के रुखसार से,आँखों मे हुई किरकिरी

और सपने सारे धूमिल हो गए..भरी आँखों से जो समेटना चाहा इन बिखरे सपनो को,रेत जो फिर उड़ी

तेज़ रफ़्तार से,शामिल रही मर्ज़ी इसी मे आसमां के भेजे इस सैलाब से...जज़्बा तो गहरा है,आँखों का

धुंदलका रोशन फिर कर पाए गे..यह बात और है आँखों को,इन पलकों को,काजल से फिर ना भर

पाए गे...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...