शामियाना इन आँखों का,इन पलकों का..रेत जो उड़ी किसी और के रुखसार से,आँखों मे हुई किरकिरी
और सपने सारे धूमिल हो गए..भरी आँखों से जो समेटना चाहा इन बिखरे सपनो को,रेत जो फिर उड़ी
तेज़ रफ़्तार से,शामिल रही मर्ज़ी इसी मे आसमां के भेजे इस सैलाब से...जज़्बा तो गहरा है,आँखों का
धुंदलका रोशन फिर कर पाए गे..यह बात और है आँखों को,इन पलकों को,काजल से फिर ना भर
पाए गे...
और सपने सारे धूमिल हो गए..भरी आँखों से जो समेटना चाहा इन बिखरे सपनो को,रेत जो फिर उड़ी
तेज़ रफ़्तार से,शामिल रही मर्ज़ी इसी मे आसमां के भेजे इस सैलाब से...जज़्बा तो गहरा है,आँखों का
धुंदलका रोशन फिर कर पाए गे..यह बात और है आँखों को,इन पलकों को,काजल से फिर ना भर
पाए गे...