अपनी हर नाकामयाबी पे नाज़ है आज भी..कामयाबी जिस ने ऊँचा उठाया गर हम को,नाकामयाबी
की ठोकरों ने हौसला उतना ही बुलंद किया हमारा..गर्म रेत पे जितना झुलसे पाँव हमारे,शाँत हुए उतने
ही मन और दिमाग हमारे..मुश्किलात की राहें तब्दील हुई ऐसे,जुगनू चल रहे हो अँधेरी रातो मे जैसे..
रिमझिम बरखा सिखा गई आंसू पीने,सूरज की तेज़ रौशनी सिखा गई हर हालात मे जीना जीने..सिक्को
ने सिखाया,सब कुछ मैं ही नहीं..मुझ से ऊपर है संस्कार तेरे...
की ठोकरों ने हौसला उतना ही बुलंद किया हमारा..गर्म रेत पे जितना झुलसे पाँव हमारे,शाँत हुए उतने
ही मन और दिमाग हमारे..मुश्किलात की राहें तब्दील हुई ऐसे,जुगनू चल रहे हो अँधेरी रातो मे जैसे..
रिमझिम बरखा सिखा गई आंसू पीने,सूरज की तेज़ रौशनी सिखा गई हर हालात मे जीना जीने..सिक्को
ने सिखाया,सब कुछ मैं ही नहीं..मुझ से ऊपर है संस्कार तेरे...