देख अकेले ज़माना साथ चलने लगा,हम ख़ामोशी मे है वो दुखी होने लगा...हम आप के साथ है,बेवजह
करीब आने लगा..कुछ तो बोलिए,हमारी गुफ्तगू की इंतज़ार मे तरस देने लगा...हम जो हमेशा की
तरह तब भी और अब भी,शानो-शौकत की भाषा जानते है..ताकत से भरे है,मगर खुद को सभी से
जुदा रखते है..मुस्कुरा दिए ज़माने की सोच पे..''नादान है जो हम को नहीं समझते है..इस ज़माने की
बार-बार धज़्ज़ियाँ उड़ाते आए है..गिरते हुओ को उठाते आए है..ख़ामोशी को दर्द समझने की गलती
ना कर..ऐ,ज़माने,खुदा के दरबार मे खुद को साबित करते आए है''..
करीब आने लगा..कुछ तो बोलिए,हमारी गुफ्तगू की इंतज़ार मे तरस देने लगा...हम जो हमेशा की
तरह तब भी और अब भी,शानो-शौकत की भाषा जानते है..ताकत से भरे है,मगर खुद को सभी से
जुदा रखते है..मुस्कुरा दिए ज़माने की सोच पे..''नादान है जो हम को नहीं समझते है..इस ज़माने की
बार-बार धज़्ज़ियाँ उड़ाते आए है..गिरते हुओ को उठाते आए है..ख़ामोशी को दर्द समझने की गलती
ना कर..ऐ,ज़माने,खुदा के दरबार मे खुद को साबित करते आए है''..