दो कदम तुम चले, पर चार कदम हम ने दिए..दो लफ्ज़ मुहब्बत के तुम ने कहे,हम ने प्रेम के कितने
शब्द ऐसे कहे...वो पाक थे कितने,वो खास थे कितने..पर तेरी समझ से बहुत बहुत दूर थे कितने..
ईश्वर कहे या बोले अल्लाह,या पढ़ ले रोज़ कुरान..दिल जो डोले इधर-उधर,लफ्ज़ तो सारे है बेकार..
निष्ठा है तो प्रेम टिके गा..सरल सहज सच मे मन है,तो प्रेम का साथ अनंत अनंत है...झूठी तारीफ वो
है सुनते,जो विश्वास खुद पे नहीं करते..कृष्णा-राधा संग रहे,क्यों कि मन दोनों के बेहद पाक-साफ़ रहे..
शब्द ऐसे कहे...वो पाक थे कितने,वो खास थे कितने..पर तेरी समझ से बहुत बहुत दूर थे कितने..
ईश्वर कहे या बोले अल्लाह,या पढ़ ले रोज़ कुरान..दिल जो डोले इधर-उधर,लफ्ज़ तो सारे है बेकार..
निष्ठा है तो प्रेम टिके गा..सरल सहज सच मे मन है,तो प्रेम का साथ अनंत अनंत है...झूठी तारीफ वो
है सुनते,जो विश्वास खुद पे नहीं करते..कृष्णा-राधा संग रहे,क्यों कि मन दोनों के बेहद पाक-साफ़ रहे..