मुहब्बत को जो सादगी से देखा तो इस का रूप मासूम और निष्पाप नज़र आया..बात जब समर्पण
पे आई ,साफ़ आसमाँ की तरह बेदाग़ नज़र आया ..हल्का सा पाप मुहब्बत को दाग़दार कर देता
है..झुकना और दिल के हर कोने से मुहब्बत को सैलाब की तरह बहा देना..राहो मे कदम-कदम
पे बिछ जाना,गरूर से नहीं मुहब्बत से अपनी जान को जीत लेना...जो बसा हो रूह मे,जिस्म के
मायने इस के आगे क्या होंगे..बात उठे गी जब भी शुद्ध प्रेम की,हम याद करे गे कृष्णा-राधा के
परिशुद्ध प्रेम की...
पे आई ,साफ़ आसमाँ की तरह बेदाग़ नज़र आया ..हल्का सा पाप मुहब्बत को दाग़दार कर देता
है..झुकना और दिल के हर कोने से मुहब्बत को सैलाब की तरह बहा देना..राहो मे कदम-कदम
पे बिछ जाना,गरूर से नहीं मुहब्बत से अपनी जान को जीत लेना...जो बसा हो रूह मे,जिस्म के
मायने इस के आगे क्या होंगे..बात उठे गी जब भी शुद्ध प्रेम की,हम याद करे गे कृष्णा-राधा के
परिशुद्ध प्रेम की...