खुशबू तेरी साँसों की,महक तेरे जिस्म की..मेरे जिस्म मेरी रूह मे इस कदर शामिल है..कही भी जाऊ
किसी भी महफ़िल मे रहू,तेरी ही परछाई साथ मेरे रहती है..वो तेरी गहरी काली झील सी आंखे,वो
तेरी अनकही कुछ बातें..अब कुछ कुछ समझ मुझे आने लगी है...समर्पण की बेला मे भी मेरे सम्मान
को कायम रखना,बाइज़्ज़त मुझे अपना कहना..इबादत मेरी भी उतनी ही करना,जितनी खुदा के बाद
मेरा हक़ होना...तुझे फ़रिश्ता कहे या मेरे नसीब का गहना..इस से जयदा अल्फ़ाज़ तेरे लिए,अब कहां
से लाए मेरे सनम...
किसी भी महफ़िल मे रहू,तेरी ही परछाई साथ मेरे रहती है..वो तेरी गहरी काली झील सी आंखे,वो
तेरी अनकही कुछ बातें..अब कुछ कुछ समझ मुझे आने लगी है...समर्पण की बेला मे भी मेरे सम्मान
को कायम रखना,बाइज़्ज़त मुझे अपना कहना..इबादत मेरी भी उतनी ही करना,जितनी खुदा के बाद
मेरा हक़ होना...तुझे फ़रिश्ता कहे या मेरे नसीब का गहना..इस से जयदा अल्फ़ाज़ तेरे लिए,अब कहां
से लाए मेरे सनम...