ख़ामोशीया बोलती है अक्सर यह बात..मैं हर पल तेरे साथ हू,तुझे सुनाई दे या ना दे तेरे हर एहसास
मे तेरे पास हू...तन्हा तन्हा जब भी हुए,आवाज़ ख़ामोशी की तभी सुनाई दी..अक्सर शोर मे खुद की
भी आवाज़ सुनाई नहीं देती फिर इस ख़ामोशी को कौन सुन पाता...किनारे दर किनारे,साँसों की
रफ़्तार को जब हौले से थामा हम ने..ख़ामोशी ने सवाल उठाया,क्यों पराया मुझे कर दिया तूने..सवाल
उस का वाजिब था मगर जवाब नहीं था पास हमारे..बस इतना कहा,तेरी बेकदरी अब से नहीं करे गे हम..
मे तेरे पास हू...तन्हा तन्हा जब भी हुए,आवाज़ ख़ामोशी की तभी सुनाई दी..अक्सर शोर मे खुद की
भी आवाज़ सुनाई नहीं देती फिर इस ख़ामोशी को कौन सुन पाता...किनारे दर किनारे,साँसों की
रफ़्तार को जब हौले से थामा हम ने..ख़ामोशी ने सवाल उठाया,क्यों पराया मुझे कर दिया तूने..सवाल
उस का वाजिब था मगर जवाब नहीं था पास हमारे..बस इतना कहा,तेरी बेकदरी अब से नहीं करे गे हम..