Sunday 8 December 2019

यह कलम हमारी जब भी लिखती है ..कायनात मे छिपी सारी मुहब्बत को,रफ्ता-रफ्ता पन्नो पे उतारती

है..कलम मुहब्बत की पाकीज़गी से भरे लफ्ज़ ही उठाती है.. मुहब्बत,जो बेदाग़ है..मुहब्बत,जो निष्पाप

है..मुहब्बत,जो रूहों का अनकहा एहसास है..ना जाने इसी पाकीज मुहब्बत के लिए,कितने लफ्ज़ पन्नो

पे और उतारे गे..मुहब्बत और क़ुरबानी,इक दूजे का नाता है..मुहब्बत,जो सिर्फ देती है..वक़्त आए तो

क़ुरबानी भी दे जाती है..तभी तो पाक कहलाती है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...