यह वैसी ही कोई शाम है या यादों का धुंधलका...प्रेम की मीठी बतिया चुग रही है आज भी यादों से
दाना..कौन कहता है,सारे प्रेम सही होते है शुरुआत मे,संदिग्ध हो जाते है मध्य मे और गलत हो जाते
है अंत मे..मुस्कुरा दिए इस प्रेम की बात पे..प्रेम की शुद्धता जानी है जिस ने रूह की पुकार से,वो कहा
माने गा प्रेम का कौन सा आधार है..ना इस की कोई शुरुआत है,ना मध्य है ना ही अंत है..जो लिपटा है
इबादत के मासूम महीन धागो मे,जो रहा सदा पूजा के थाल मे..जो अब भी रचा है उसी अनोखी शाम मे.
दाना..कौन कहता है,सारे प्रेम सही होते है शुरुआत मे,संदिग्ध हो जाते है मध्य मे और गलत हो जाते
है अंत मे..मुस्कुरा दिए इस प्रेम की बात पे..प्रेम की शुद्धता जानी है जिस ने रूह की पुकार से,वो कहा
माने गा प्रेम का कौन सा आधार है..ना इस की कोई शुरुआत है,ना मध्य है ना ही अंत है..जो लिपटा है
इबादत के मासूम महीन धागो मे,जो रहा सदा पूजा के थाल मे..जो अब भी रचा है उसी अनोखी शाम मे.